लेखनी प्रतियोगिता -08-Jul-2022एक रात भूतनी के साथ
देवीलाल अपने गाँव से शहर जाया करता था ।वह शहर में एक फैक्ट्री मे काम करता था उसकी बारह घन्टे की ड्यूटी थी। सचबह आठ बजे से शाम को आठ बजे तक की उसकी ड्यूटी थी।
सुबह वह सात बजे से पहले ही उसे घर से निकलना पड़ता था और शाम को नौबजे तक घर आ पाता था। जब तकवह घर नही आजा ता था तब तक उसके परिवार वालौ को चैन नहीं आता था।
बच्चौ को यह आशा रहती थी कि पिताजी आयेगे तो शहर से कुछ न कुछ लैकर ही आयेगे। जिस दिन वह कोई सामान लेकर आता था उस दिन वह अक्सर देर से ही आ पाता था।
देवीलाल जब अपने गाँव से शहर आता जाता था तब उसे एक श्मशान भूमि के पास से गुजरना पड़ता था। जहाँ पर पहले कितनी ही बार वहाँ अनेक लोगौ के साथ हादसे हो चुके थे। परन्तु रास्ता वही होकर निकलता था जिससे लोगौ को वहाँ से जाना मजबूरी कहो ।
एक दिन की बात है तब सर्दियौ के दिन थे । शाम को सूरज देवता भी जल्दी ही अस्त होजाते थे। लोग सर्दी के कारण खाना खाकर जल्दी ही अपनी अपनी रजाईयौ में घुसजाते थे। उस दिन कोहरा भी पड़ रहा था जिससे एक फुट की दूरी पर खडा़ कुछ भी नजर नहीं आरहा था।
उस समय गाँव में बिजली भी नही थी। फौन तो था ही नही हाँ लेंड लाइन फौन अवश्य देवीलाल के गाँव के पोस्ट आफिस में लगा था। जिस दिन देवी लाल देर से आता था तब उसके घर वाले उस फौन से बात कर लेते थे। और पता करलेते थे कि वह वहाँ से चला है अथवा नहीं।
आज देवुलाल को तनखा मिली थी। अतः वह आज घर का सामान खरीदकर लेजाना चाहरहा था।
देवीलाल ने घर का सामान खरीदा और वह वहाँ से चलपडा़ सामने का रास्ता भी नजर नहीं आरहा था जिससे वह अपनी साईकिल बहुत धीरे धीरे चला रहा था। जैसे ही वह श्मशान भूमि के पास पहुँचा उसी समय उसकी साईकिल किसी से टकरा कर गिर गयी।
देवीलाल शीघ्रता से अपने कपडे़ झाड़ता हुआ खडा़ होगया। उसने जैसे ही अपनी नजर उठाई उसके सामन एक सुन्दर सी युवती खडी़ थी। उसको देखकर देवीलाल सकपका गयाऔर उसने अपनी नजरै झुका ली।
" देवीलाल जी इस थैले में क्या लाये हो ? " इतना कहकर उसने देवुलाल के हाथ से थैला छीन लिया। और उसमें से सामान निकाल कर कुछ खाने का सामान देखने लगी। उस थैले मे उसे गर्म जलेबी मिल गयी। जलेबी देखकर वह बाला बोली," देवीलाल मै गरम जलेबी खाने के लिए कितने साल से तरस रही हूँ।" इतना कहकर वह जलेबी खाने लगी।
उसी समय देवीलाल की नजर उसके पैरौ की तरफ चली गयी। उसके पैर देखकर वह काँपने लगा। अब उसे याद आया कि वह श्मशान के पास है।और उसके सामने भूतनी खडी़ है। यह औरत नही है इतनी रात को यहाँ अकेली औरत कहाँ से आसकती है।
वह सुन्दरी बोली," लो तुमभी खाओ। बैसे देवीलाल तुम सोच रहे होगे कि मै तुम्है कैसे जानती हूँ। मै तुम्हारी भाभी रैना हूँ। तुम मेरे घर आते थे और मुझे छिप छिप कर देखते थे ।आज मुझे अच्छी तरह देखलो आज तो मै तुम्हारे सामने खुली किताब की तरह खडी़ हूँ। आओ मुझे अपनी बाँहौ में लेलो। मै तो कबसे इसके लिए तरस रही हूँ । " इतना कहकर वह उससे लिपटने उसके नजदीक गयी
परन्तु देवीलाल नहीं नहीं कहता हुआ पीछे हटता गया और वह एक खाई में गिरकर बेहोश होगया। और वह भूतनी भी उसके ऊपर गिर पडी़।
जब देवीलाल रात के बारह बजे तक घर नहीं पहुँचा तब उसकी पत्नी ने पोस्ट आफिस को खुलवाकर फैक्ट्री मे फौन किया तब उसे पता चला कि वह तो समय पर चला गया था। अब उसकी पत्नी किसी अनहौनी की सोचकर डर गयी।
उसने मुहल्ले के दो चार आदमियौ को जगाकर उनके साथ चार बजे के लगभग देवीलाल को खोजने निकल पडी़ ।जब वह सब खोजते हुए श्मशान भूमितक पहुँचे तब वहाँ साईकिल गिरी हुई और सामान बिखरा हुआ देखा। पास में आधी खाई हुई जलेबी का लिफाफा देखकर चिन्ता हुई फिर खाई मे नजर गयी तब वहाँ देवीलाल को बेहोशी की हालत मे देखकर उसे बहुत मुश्किल से उठाया। वह बहुत डरा हुआ था। वह डर से काँप यहा था और चारौ तरफ नजर उठा उठाकर कुछ खोजने की कोशिश कर रहा था।
देवीलाल को घर लाये जब वह कुछ ठीक होगया तब उसने पूरी घटना सुनाई जिसको सुनकर सभी डर गये। देवीलाल को ठीक हौने में दस बारह दिन लग गये। जब वह उस भूतनी के साथ बिताई एक रात याद करलेता तब वह भय से काँप जाता था।
दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना
नरेश शर्मा " पचौरी "
08/07/2022
Punam verma
09-Jul-2022 03:32 PM
Nice
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Mohammed urooj khan
08-Jul-2022 09:35 PM
Nice
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Seema Priyadarshini sahay
08-Jul-2022 08:36 PM
Nice story 👍
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